यह कविता एक व्यक्ति के संघर्ष को दर्शाती है, जो वक्त की दीवार के सहारे अपने जीवन का मुकाम निहारता है। वह हर बार गिरता है, फिर उठता है और अपना जहां संवारता है। ज़िन्दगी की नई फसल कटती जाती है, लेकिन उस व्यक्ति के लिए कोई मंज़िल का इंतज़ार नहीं होता, क्योंकि वह हर बार नए सफर की तलाश में सफर करता है। इस कविता में उत्साह और संघर्ष के भाव हैं जो हमें हमेशा अग्रसर रहने के लिए प्रेरित करते हैं।
वक्त के साथ अपना जहां संवारते हुए
वक्त सी दीवार का सहारा लेकर,
मुकाम सा आसमां निहारता हूं।
गिरता हूं , फिर उठता हूं।
मैं अपना जहां संवारता हूं।
अक्सर उठते हैं सवेरे कुछ नया करने को,
ज़िन्दगी की नई फ़सल कटती जाती है।
चलते-चलते याद आता है,
कैसे गिरते-गिरते हम चले आते हैं।
हर बार नए फूल खिलते हैं,
बस देखना होता है नया सफर खोलते हुए।
किसी मंज़िल का इंतज़ार नहीं होता,
किसी सपने की तलाश में सफर जारी रहता है।
ज़िन्दगी ने कई बार हमें हाराया होगा,
लेकिन हम हार नहीं मानते, समझते हैं कि हर बार सफलता के लिए तैयार होते हुए नए सफर आगे बढ़ते हैं।
इसी उत्साह के साथ हम संघर्ष जारी रखते हैं,
क्योंकि वक्त सी दीवार का सहारा लेकर हम अपना जहां संवारते हुए आगे बढ़ते हैं।
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