चुनाव पर कविता: अधिकांश भारतीय, राजनेताओं को भ्रष्ट के रूप में देखते हैं और सवाल करते हैं कि चुनाव प्रभावी हैं या नहीं।
आधे से थोड़ा अधिक भारतीय वयस्क (54%) अपने देश में जिस तरह से लोकतंत्र काम कर रहा है, उससे संतुष्ट हैं, लेकिन एक तिहाई असंतुष्ट हैं।
इन चुनाव के मौसम में मैं ऐसी कविता का चयन प्रदान कर रही हूँ जिनकी हमें उम्मीद है कि केवल कविता ही उस तरह से प्रतिक्रिया दे सकती है।
चुनाव जीत गए
वहां विलायती चप्पल पर ऐठा
यहां देश डुबावन पर बैठा
लगा हुआ ऐसन पर तैसा
काली नियत पर काला पैसा।।
कौन यहां है अधढ़ अनपढ़?
पूछे तो नेता जी खीझ गए?
भैयाजी चुनाव जीत गए!
भैयाजी चुनाव जीत गए!!
कलुआ की साली बीमार
सास सही घरवाली बीमार
जनता की ताली बीमार
और कलुआ जेब से कंगाली बीमार।।
टेक्स पर टेक्स का एक्स है बैठा,
पर 50 कोटि में विधायक जी बिक गए।
भैयाजी चुनाव जीत गए।
भैयाजी चुनाव जीत गए।
देश दरिद्रता जन-जन में गूंजे
बेरोजगारी से युवा जूझे
आख़िर क्या पड़ी है अनुराधा तुझे
अकलमंद कहां अकल को बुझे
कहां लगाए हो आंखन को अपने,
भविष्य ले डूबे जो डूबे अतीत गए।
भैयाजी चुनाव जीत गए।
भैयाजी चुनाव जीत गए।।
अच्छा हुआ जो मुंह न खोला
पत्रकार था पर लिए था झोला
सत्य को लालच से तौला
अरे भई! ऐसा मैंने नहीं, पड़ोसी बोला
मैं क्या मेरा क्या यहां पर,
सब लुटे जब वो लूट गए।
भैयाजी चुनाव जीत गए।
भैयाजी चुनाव जीत गए।
वो बेचारियां गुर्खा-तुर्खा से परेशान
उनको चाहिए आत्मसम्मान
घर में दब जाता है ज्ञान
कानून से मांगती भीख में पहचान
खैर जाति घूंघट का रायता फैलाकर,
एक बार ध्यान वो फिरसे खींच गए।
नेताजी चुनाव जीत गए।
नेताजी चुनाव जीत गए।।
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चुनावी हास्य कविता
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